देवीसिंह बडगूजर जोधपुर। पापा उठो ना, हम से बात करो। उठो न, क्यों सोए हुए हो। उठो हमसे बात तो करो। पोकरण तहसील के राजमथाई से चार किमी दूर लोंगासर के एक घर आंगन में रखी पार्थिव देह पर आंसू बहाते हुए जोर -जोर से चिल्लाकर उन्हें उठाने की कोशिश करते बच्चों को देख मौजूद सभी लोगों की ऑंखें भी रो उठी। शहीद नरपतसिंह की लाडली बेटी गुलाब कंवर अपने पिता के पार्थिव देह को यही कहकर उन्हें उठाने की कोशिश कर रही थी। बेटी की आंखों से बह रहे आंसुओं और चीत्कारों ने आस-पास खडे हजारों लोगों की आंखों में आंसू ला दिए।
मालूम हो असम में उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए नरपतसिंह की पार्थिव देह राजमथाई से चार किलोमीटर दूर लोंगासर स्थित उसके पैतृक मकान में पहुंची थी। तिरंगे में लिपटा शहीद का शव सेना के जवानों द्वारा घर में रखने के साथ ही गांव के साथ दूरदराज से आए लोग शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए उमड पडे। एक ओर जहां परिवार के सदस्यों का रो -रो कर बुरा हाल था वहीं उन्हें अपने शहीद बेटे के बलिदान पर गर्व भी था। अंतिम दर्शन के पश्चात उनके पुत्र फूलसिंह ने शहीद को मुखाग्नि दी। इससे पूर्व भारतीय सेना के अधिकारियों ने पुष्पचऋ अर्पित किए तो जवानों ने सशस्त्र सलामी दी। जैसलमेर के विधायक छोटूसिंह भाटी, पोकरण विधायक शैतानसिंह राठौड., पूर्व विधायक सालेह मोहम्मद, राज्य बीज निगम के अध्यक्ष शंभूसिंह खेतासर ने भी पुष्पचऋ अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। अंतिम यात्रा में शामिल लोगों ने नरपसिंह की शान में नारे लगाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। लोगों ने भारत माता के जयकारों के साथ नरपतसिंह अमर रहे.., जब तक सूरज चांद रहेगा, नरपतसिंह का नाम रहेगा जैसे गगनभेदी नारे लगाए, तो वहां मौजूद हर किसी की आंखे नम हो गई।
अंतिम यात्रा में शामिल होने आए सूबेदार ओमप्रकाश सिंह के अनुसार 19 नवंबर की सुबह असम में 15 कुमाऊं रेजिमेंट में तिनसुकिया के पेनगिरी एरिया में एडम ड्यूटी के लिए गाडियां लेकर बटालियन क्षत्र में आ रहे थे। बीच रास्ते में उग्रवादियों ने सेना की टुकडी पर अचानक हमला बोल दिया तथा जवानों पर आईडी ब्लास्ट किया। आईडी ब्लास्ट से सभी गाडियां रुक गई तो उग्रवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी। अंधाधुंध फायरिंग के बीच नरपतसिंह ने अपने वाहन को बाहर निकाला और जवाब में फायरिंग करनी शुरू की। इसी दौरान एक गोली उनके कंधे पर लगी, जिससे उनका खून बहने लगा। उग्रवादियों ने आरपीजी फायर किया जिसके टुकडे उनके शरीर में घुस गए। नरपतसिंह वीरता का परिचय देते हुए अंतिम सांस तक उनसे लोहा लेते और उग्रवादियों को भागने पर मजबूर कर दिया। उग्रवादी घने कोहरे और जंगल का फायदा उठाकर वहां से भाग गए।
नरपतसिंह को मौके पर ही फर्स्टएड दिया गया। तत्पचात उन्हें हवाई जहाज से मिलिट्री हॉस्पिटल लाया गया, लेकिन बीच रास्ते में ही अत्यधिक खून बह जाने के कारण उन्होंने प्राण त्याग दिए। असम के तिनसुकिया क्षेत्र में उग्रवादयों से लोहा लेते 19 नवंबर को शहीद हुए नरपतसिंह की देह 48 घंटे बाद राजमथाई के लोंगासर स्थित पैतृक आवास पर सोमवार को पहुंची थी।